शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

नयी आदत


 ताले जितने थे
 सबके सब तोड़े जा चुके
 और हम अब भी चाबी संभाल रहे 
 जवाब नहीं हमारा
 पहले खाते हम थे
 मेमियाता था मेमना
 अब हम खाते भी हैं, मेमियाते भी हैं

3 टिप्‍पणियां:

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

इन सात पंक्तियों में बहुत गहराई है.

विनोद सैनी ने कहा…

बहुत ही व्‍यग्‍यात्‍क टिप्‍पणी मे तो समझा ही नही की किस पर इन्‍हे लागू करू जिस पर भी लागू करता हू सटीक बेठती है

यूनिक ब्लॉग---------जीमेल की नई सेवा

रंजीत/ Ranjit ने कहा…

Aabhar Nihar jee aur Vinod jee .