शनिवार, 14 मई 2011

खेत को खाता खाद


दहाये हुए देस का दर्द-73 
जमीन का जन्म नहीं होता, लेकिन जमीन की मौत होती है। बिहार के कोशी अंचल में जब कोई जमीन बंजर हो जाती है तो किसान कहते हैं- जमीन मर गयी। जी हां, इस इलाके में बंजर जमीन को मरिया खेत कहते है। कोशी और उसकी सहायक नदियों की जहरीली रेत इस इलाके की जमीन को बंजर बनाती रही है। सन्‌ 2008 के कुसहा हादसा के बाद इलाके के हजारों एकड़ खेत रेत से भर गये थे, जहां अभी तक खेती शुरू नहीं हो सकी है। और अब एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि रासायनिक उर्वरकों के बेतहाशा इस्तेमाल के कारण इलाके की जमीन तेजी से बांझ हो रही है। कृषि वैज्ञानिकों के एक दल ने यह अध्ययन किया है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि पिछले एक दशक में इलाके की जमीन में क्षारीयता यानी सैलिनिटी साढ़े तीन प्रतिशत ज्यादा हो गयी है। अगर यह सिलसिला यूं ही चलता रहा तो अगले पांच दशकों में इलाके की साठ फीसद उपजाऊ जमीन बंजर हो जायेगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी मुख्य वजह रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध इस्तेमाल तो है ही, साथ ही ॠतु चक्र में बदलाव, तापमान असंतुलन भी इसके लिए जिम्मेदार है।
सर्वेक्षण में बताया गया है कि कोशी अंचल की 38345 एकड़ जमीन अब तक बंजर हो चुकी है और 3879 एकड़ जमीन में क्षारयीता का प्रतिशत सात तक पहुंच चुका है। गौरतलब है कि जब जमीन में सैलिनिटी का लेवल साढ़े सात के आसपास हो जाता है, तो वह खेती योग्य नहीं रह जाती। ऐसी जमीन की पुंसकता खत्म हो जाती है और वह बीजों को न तो अंकुरित कर पाती है और न ही जड़ को पानी उपलब्ध करा पाती है।
पूसा कृषि विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किये गये इस अनुसंधान में इलाके के आठ जिलों के 13756 स्थानों से मिट्टी के नमूने लिये गये थे। अनुसंधान में शामिल पूसा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक जीपी. दत्ता का कहना है कि यह भयानक खतरे की घंटी है। बकौल दत्ता, 2002 में यहां की जमीन में क्षारीयता का लेवल औसतन साढ़े चार से पांच था, जो अब साढ़े छह से सात के बीच हो गया है। सबसे खतरनाक स्थिति पूर्णिया के बीकोठी ,रूपौली, मधेपुरा के कुमारखंड, ग्वालपाड़ा, सुपौल के निर्मली, राघोपुर, कटिहार के मनिहारी, बलरामपुर और अररिया के रानीगंज प्रखंड की है।
गौरतलब है कि खेतों में यूरिया के अलावा अन्य रासायनिक उर्वरकों के अनियंत्रित उपयोग के कारण जमीन में रसायनिक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है, क्योंकि फसल सारे तत्वों को अवशोषित नहीं कर पाती। इन्हें हटाने या निष्क्रिय करने की तकनीक किसानों के पास नहीं है। इसके परिणामस्वरूप खेतों में साल-दर-साल नाइट्रोजन,फास्पोरस जैसे रसायनिक तत्व जमा होते चले जाते हैं, जो जमीन की क्षारीयता को इतना बढ़ा देते हैं कि जमीन खेती लायक नहीं रह जाती। जल स्तर में गिरवाट भी इसके लिए जिम्मेदार है, क्योंकि जल स्तर जितना घटता जाता है भूमि की नमी भी उसी रफ्तार से घटती है। लेकिन अभी तक सरकार की ओर से इसे रोकने के लिए कोई उपाय नहीं किया गया है। इस समस्या से किसान अनभिज्ञ हैं। किसानों को जागरूक करने के लिए सरकार को अविलंब प्रयास करना चाहिए। वैसे भी कोशी के लोग प्रकृति के हाथों सदियों से प्रताड़ित होते रहे हैं। सरकारी उपेक्षा इलाके की नीयति है। जमीन यहां के लोगों की आजीविका का एक मात्र साधन है, अगर वह भी बंजर हो गयी तो इलाके के दो करोड़ लोग क्या कमायेंगे, क्या खायेंग और क्या लेकर परदेश जायेंगे ?

3 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

स्थिति चिंताजनक है। समय रहते हमें चेत जाना चाहिए और उपयुक्त क़दम उठाने चाहिए।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये स्थिति चिंता पैदा करती है ... किसान तो है ही सोचने ले लिए ... सरकार और जनता को भी सोचना चाहिए ... अगर ऐसा ही चलता रहा तो अनाज की विकराल समस्या सामने होगी ....

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

बहुत चिंताजनक हालात हैं, इसपर फौरी कार्यवाही जरूरी है।

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सीधे सच्‍चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।
बदल दीजिए प्रेम की परिभाषा...