गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

फिर अंधेरे में तीर

(कुसहा -०८ में ध्वस्त कोशी का मुख्य पूर्वी नहर : मार्च 2009)
दहाये हुए देस का दर्द -57
कहते हैं कि हादसों में भले ही सब कुछ नकारात्मक हो, लेकिन एक सकारात्मक बात भी होती है। वह है - तजुर्बा। इंसान हादसों से सबक ले, तो आने वाले कई हादसों को टाल सकता है। कोशी नदी का "कुसहा तटबंध कांड'' भी एक भयानक हादसा (यह अलग बात है कि यह कुदरती नहीं बिल्क मानव निमिर्त था) था। अगर मोटे तौर पर कहें तो कुसहा हादसे ने कोशी प्रमंडल के 30 लाख लोगों को साठ वर्ष पीछे धकेल दिया। जान-प्राण का जो नुकसान हुआ, सो अलग। लेकिन इस पर अगर गंभीरता से विचार करें तो स्पष्ट होता है कि कुसहा-08 ने हमें एक ब़डी सीख दी है। वह यह कि हम अपनी नदी प्रोजेक्ट की दशकों पुरानी और अब असंगत हो चुकीं नीतियों-योजनाओं पर पुनविर्चार करें। नदी प्रोजेक्ट्‌स के अब तक के अनुभवों की समीक्षा व मूल्यांकन करें और अपनी नदी-नीतियों को अद्यतन कर लें। लेकिन लगता नहीं है कि सरकार ने कुसहा हादसा से कुछ सीखा है।
हाल में बिहार सरकार के कैबिनेट ने कोशी नदी के नहरों के जीर्णोद्धार के लिए एक मेगा प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है। इसके मुताबिक बिहार सरकार आगामी वर्षों में कोशी बाराज, कोशी तटबंध और उसके पूर्वी नहरों के जीर्णोद्धार पर एक हजार करो़ड से ज्यादा रुपये खर्च करेगी। इस महायोजना को ठीक उसी तर्ज पर मंजूरी दी गयी है जिस पर पांच दशक पहले कोशी प्रोजेक्ट को स्वीकृत किया गया था। मेरे जैसे लोगों (जो कोशी-वीभिषिका के भोक्ता हैं ) को, इससे भारी निराशा हुई है। क्योंकि हम जानते हैं कि अब कोशी नदी को नये नजरिये से देखने की जरूरत है। जब तक कोशी के वतर्मान हैद्रोलोजी , ज्योगरफी और इकोलाॅजी पर सम्पूर्ण अध्ययन नहीं हो जाता, तब तक किसी योजना की शुरुआत "गोबर में घी'' डालने जैसी ही होगी। समझ में नहीं आता कि सरकार जानबूझकर कुएं में कूदना क्यों चाहती है। अगर सरकार हजारों करो़ड रुपये जीर्णोद्धार पर खर्च कर सकती है तो कुछ लाख रुपये नदी के चरित्र को समझने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों पर क्यों खर्च नहीं कर सकती ? तमाम अनुभव बताते हैं कि कोशी के चरित्र में भारी परिवतर्न आ चुका है। इसके माैजूदा प्रवाह-मार्ग (दोनों तटबंधा के अंदर) के तल आसपास (कंट्री साइड) के तल से ऊंचे हो गये हैं। ऐसी परििस्थति में कोशी को तटबंधों के अंदर रखना अब मुमकिन नहीं रह गया है। भले ही तटबंधों को ऊंचा और पक्का कर हम कुछ साल नदी को तटबंधों के अंदर बहा लें, लेकिन स्थायी तौर पर हम ऐसा नहीं कर सकते। उधर नेपाल में जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण कोशी में गादों की मात्रा तूफानी रफ्तार से ब़ढ रही है। यह चिंता का दूसरा ब़डा विषय है। लेकिन सरकार इस ओर ध्यान नहीं देना चाहती। कुछ वर्ष पहले भी उसने बगैर अनुसंधान के कोशी रेलवे महासेतु और दरभंगा-फारबिसगंज लेटरल रोड को मंजूरी दी थी। और अब तक इन दोनों परियोजनाओं पर हजारों करो़ड रुपये खर्च किये जा चुके हैं। यह तय है कि जिस दिन कोशी तटबंधों को तो़डकर धारा बदलेगी उस दिन ये महासेतु, ये स़डकें नेस्तनाबूद हो जायेंगे। कुसहा हादसे में हम ऐसा देख भी चुके हैं।
होना तो यह चाहिए कि सरकार दुनिया के नामचीन नदी विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, अभियंता आदि को बुलाती और इस पर बहस करवाती। इसके पश्चात किसी नतीजे पर पहुंचती। मेरे विचार से तो कोशी के वतर्मान प्रवाह-मागर् को तत्काल उ़ढाहने (डिसिल्टेशन) की आवश्यकता है ताकि नदी को बहने के लिए संघर्ष न करना प़डे। सिल्ट को हटाने के सिवाय हमारे पास और कोई विकल्प नहीं है। अगर नदी ही नहीं रहेगी तो हम नहर बनाकर ही क्या करेंगे ?
लगता है कि सरकार वोट बैंक की पालिसी और अभियंता-ठेकेदार के धनलोलुप व भ्रष्ट लाबी के दबाव से बाहर निकलने में असक्षम है। सरकार को अपने आॅफिसर लाबी से बाहर निकलकर कुछ स्वतंत्र अभियंता और विशेषज्ञों से बात करनी चाहिए थी। भले ही नेता खुद इस मुद्दे को समझने में सक्षम न हो, लेकिन वे इतने भी नादान तो नहीं है कि अभियंता-ठेकेदार लाबी उन्हें आसानी से गुमराह कर दें। नीतीश कुमार से तो उम्मीद की जा सकती है, क्योंकि वे खुद एक अभियंता हैं। लेकिन पता नहीं क्यों, नीतीश कुमार भी अंधेरे में धनुष तान रहे तीरंदाजों की पंक्ति में ख़डे हो गये हैं ?


कोशी सिंचाई परियोजना का ट्रैक रिकार्ड
निर्धारित सिंचाई - 712000 हेक्टेअर
पूर्वी नहर से- 37400 हेक्टेअर
वास्तविक सिंचाई- 136180 हेक्टेअर (07-08)

पश्चमी नहर से -
प्रस्तावित- 325000 हेक्टेअर
वास्तविक सिंचाई- 23770 हेक्टेअर (07-08)
स्रोत- कोशी प्रोजेक्ट कायार्लय, बीरपुर (सुपौल )
 

2 टिप्‍पणियां:

Ajay Tripathi ने कहा…

रघुकुल रीति सदा चली आई
कोई कैसे अपनी चाल बदल दे
कोसी बदलती है तो बदलती रहे

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सरकार से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है .........