मंगलवार, 27 जनवरी 2009

पुराने प्रवाह में लायी गयी कोशी

नदी को पुरानी धारा में लौटाने के लिए कॉफर तटबंध के लंबवत नये स्पर्स (ठोकर) बनाये जा रहे हैं। कुसहा के नजदीक मधुबन में निर्माणाधीन एक स्पर। उल्लेखनीय है कि कोशी तटबंधों के स्पर्स भ्रष्टाचार और लापरवाही के कारण जर्जर हो चुके हैं। कुसहा में तटबंध टूटने की एक बड़ी वजह जीर्ण-शीर्ण स्पर्स भी थी।
दहाये हुए देस का दर्द -31

कोशी पीड़ितों के लिए आज एक अच्छी खबर है। पिछले तीन महीनों से नदी को अपने पुराने प्रवाह में लाने की कोशिश आज सफल हो गयी है। कल शाम करीब सात बजे पॉयलट चैनल के निर्माण होने के साथ पानी अपने पुराने प्रवाह में यानी हनुमाननगर बराज की ओर बहने लगा था। आज दोपहर की सूचना के मुताबिक अब कुसहा कटान से होकर पानी का बहना लगभग बंद हो गया। नेपाल के बाढ़ डिवीजन के एक वरिष्ठ अभियंता मोहन भट्टराय ने आज इस बात की पुष्टि की। उनका कहना है कि फिलहाल हनुमाननगर बराज से औसतन 11 हजार क्यूसेक पानी डिस्चार्ज हो रहा है। इसके लिए पिछले कुछ दिनों से बड़ी संख्या में मजदूरों को काम पर लगाया गया था। हालांकि यह काम पिछले 10 दिसंबर को ही पूरा किया जाना था, लेकिन कई तरह की बाधाओं और सरकारों की ढुलमूल नीति के कारण मरम्मत के काम में यह देरी हुई।
लेकिन यह आधी सफलता ही है। अभी कुसहा तटबंध के कटाव की मरम्मत बाकी है। उल्लेखनीय है कि 18 अगस्त को कोशी ने नेपाल के कुसहा में तटबंध को तोड़ते हुए अपनी धारा बदल ली थी और नेपाल के दो जिले समेत पूर्वी बिहार में जल प्रलय मचा दिया था। इस विभीषिका ने लाखों लोगों को तबाह कर दिया । हजारों घर बह गये, सैकड़ों लोग मारे गये, हजारों की संख्या में मवेशी मारे गये और लाखों एकड़ जमीन रेत में तब्दील हो गयी। बिहार के अररिया, सुपौल, मधेपुरा और पुर्णिया जिले के लाखों लोग आज भी इसके दर्द झेल रहे हैं।
कुसहा में तटबंध की मरम्मत जितनी जल्द पूरी होगी उतना ही अच्छा होगा। क्योंकि फरवरी में कोशी में पानी के निष्कासन की मात्रा बढ़ जाती है। इस महीने में कोशी में बड़ी मात्रा में बर्फीला पानी आना शुरू हो जाता है। चूंकि पॉयलट चैनल ज्यादा जल राशि को रोकने में सक्षम नहीं है, इसलिए कुसहा की ओर पानी आने का खतरा हमेशा बना रहेगा। सरकार को कुसहा तटबंध की मरम्मत के लिए युद्ध स्तर पर काम कराना होगा। इसके अलावा बराज के दोनों प्रवाह में खासकर चतरा से बराज तक के अप स्ट्रीम में स्पर की मजबूती भी अनिवार्य होगी। क्योंकि नये प्रवाह ने कोशी के बहाव-विज्ञान में जबर्दस्त परिवर्तन ला दिया है। चतरा से कुसहा तक नदी के बेड से गाद साफ हो चुकी है, लेकिन कुसहा से दक्षिण की ओर गाद अपनी पुरानी अवस्था में ही है। इसका मतलब यह हुआ कि पानी स्वाभाविक रूप से दक्षिण की ओर बढ़ना नहीं चाहेगा। ऐसी परिस्थिति में गाद की सफाई अत्यंत जरूरी है। वर्तमान में पश्चिमी तटबंध के स्परों की बीच की दूरी काफी ज्यादा है। इसे घटाना पड़ेगा। उम्मीद किया जाना चाहिए कि कोशी को अपने प्रवाह में लौटाने में लगे अभियंता और सकार इस बात को ध्यान में रखकर काम करेंगे ताकि आने वाले वर्षों में कुसहा प्रहसन को पुनर्मंचन न हो।
मरम्मत के कार्य में लगे सभी मजदूरों, अभियंता और स्थानीय लोगों को मैं व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद देता हूं।

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