सोमवार, 7 जुलाई 2008

बाबा की खांसी


बाबा की खांसी और मौसी की उदासी
अकेली नहीं थी
उस दौर में, बावा के खांसने से
सनपतहा वाली भौजी की नींद खराब नहीं होती थी
मौसी की उदासी से घर का माहौल खराब नहीं होता था
और न ही घर का कोई कोना आरक्षित होता था , मौसेरी भावी के आदेश पर
यह तब की बात है जब
मौसी के गांव तक रेलवे इंजन की आवाज नहीं पहुंचती थी
और तत्सम में भी बड़ी व्यंजना कही जा सकती थी
और बाड़ी के बथुए लजीज लगते थे

लेकिन
अचानक जैसे युग ने पलटी खा लिया
मोबाइल फोन पर बातें होने लगीं
डाकिये को चिट्ठी बांचने से फुर्सत मिल गया
एक साथ
बाबा की खांसी और मौसी की उदासी जैसे गुम-सी हो गयी
अब हर चीज करीने से लगने लगी
बाबा के लिए ओल्ड होम बना दिये गये
और मौसी के सामने कई सारे विकल्प थे
रेल का इंजन या कीड़ा मारने की दवा ...

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